Saturday, April 16, 2011

दिल तक तो अब ये हमारा नहीं



इस क़दर तुम तो अपने क़रीब आ गए
कि तुम से बिछड़ना गवारा नहीं

ऐसे बांधा मुझे अपने आगोश में
कि ख़ुद को अभी तक सँवारा नहीं

अपनी ख़ुश्बू से मदहोश करता मुझे
दूसरा कोई ऐसा नज़ारा नहीं

दिल की दुनिया में तुझको लिया है बसा
तुम जितना मुझे कोई प्यारा नहीं

दिल पे मरहम हमेशा लगाते रहे
आफ़तों में भी मुझको पुकारा नहीं

अपना सब कुछ तो तुमने है मुझको दिया
रहा दिल तक तो अब ये हमारा नहीं

हमसफ़र तुम हमारे हमेशा बने
इस ज़माने का कोई सहारा नहीं

साथ देते रहो तुम मेरा सदा
मिलता ऐसा जनम फिर दुबारा नहीं

बचपन के दिन

टिमटिम तारे, चंदा मामा
माँ की थपकी मीठी लोरी
सोंधी मिट्टी, चिड़ियों की बोली
लगती प्यारी माँ से चोरी

सुबह की ओस सावन के झूले
खिलती धूप में तितली पकड़ना
माँ की घुड़की, पिता का प्यार
रोते रोते हँसने लगना

पल में रूठे, पल में हँसते
अपने-आप से बातें करना
खेल-खिलौने, साथी-संगी
इन सबसे पल भर में झगड़ना

लगता है वो प्यारा बचपन
शायद लौट के न आए
जहाँ उसे छोड़ा था हमने
वहीं पे हमको मिल जाए


17 april 2011