Saturday, April 16, 2011

दिल तक तो अब ये हमारा नहीं



इस क़दर तुम तो अपने क़रीब आ गए
कि तुम से बिछड़ना गवारा नहीं

ऐसे बांधा मुझे अपने आगोश में
कि ख़ुद को अभी तक सँवारा नहीं

अपनी ख़ुश्बू से मदहोश करता मुझे
दूसरा कोई ऐसा नज़ारा नहीं

दिल की दुनिया में तुझको लिया है बसा
तुम जितना मुझे कोई प्यारा नहीं

दिल पे मरहम हमेशा लगाते रहे
आफ़तों में भी मुझको पुकारा नहीं

अपना सब कुछ तो तुमने है मुझको दिया
रहा दिल तक तो अब ये हमारा नहीं

हमसफ़र तुम हमारे हमेशा बने
इस ज़माने का कोई सहारा नहीं

साथ देते रहो तुम मेरा सदा
मिलता ऐसा जनम फिर दुबारा नहीं

2 comments:

  1. प्रिय माही त्रिपाठी जी, इस कविता को पोस्ट करने के लिए हृदय से बहुत-बहुत बधाई ! और हाँ ...यह दोनों कवितायेँ दिल तक तो अब ये हमारा नहीं व "टिमटिम तारे, चंदा मामा,"
    मेरे द्वारा ही रची गयी है .....कृपा करके वहाँ पर मेरा नाम तो डाल दीजिए | सस्नेह धन्यवाद
    --अम्बरीष श्रीवास्तव
    http://kavyanchal.com/navlekhan/?tag=bachapan
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